भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दफ़न / सपन सारन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:23, 13 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सपन सारन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो देखो वहाँ दफ़न हूँ मैं
क्या लगता वहाँ मगन हूँ मैं ?

पढ़ रहा ये जग
दुविधाएँ मेरी
तमन्नाएँ मेरी
निराशाएँ मेरी
इन सब से सनी — कविताएँ मेरी ।

चाह कर भी समझा नहीं पाता हूँ मैं
असली मकसद मेरा
उससे उपजा दर्द मेरा
असली कारण मेरा
उससे उपजा आचरण मेरा ।
क्योंकि ... मौत में इतना मसरूफ़ हूँ मैं।

वो देखो वहाँ दफ़न हूँ मैं
क्या लगता वहाँ मगन हूँ मैं ?

अभी कल की ही तो बात है —
सोते, उठते, बैठते, जगते
हर वक्त जुमले बुनता था मैं
अभी कल की ही तो बात है —
दोष, जोश, क्रोध, विरोध
हर हाल में लिखता था मैं ।

अभी कल की ही तो बात है
कि कबीर को पढ़ता था मैं
अभी कल की ही तो बात है
कि ग़ालिब से जलता था मैं ।

आज —
इर्द ग़ालिब गिर्द कबीरा ?
बीच का अनजान फ़कीरा हूँ मैं...

वो देखो वहाँ दफ़न हूँ मैं
क्या लगता वहाँ मगन हूँ मैं ?