भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दबे पाँव आई हो / मनोज श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
Dr. Manoj Srivastav (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:04, 5 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ''' दबे पाँव …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दबे पाँव आई हो

दबे पाँव आई हो
धड़कन को कैद कर
आहों के राग से
कोई अनसुना गीत गाई हो

संवेदना ज़ज्ब किए
श्वास को नब्ज़ दिए
पेशी-स्पंदन से
भावों के लगाम को थाम-थाम आई हो

रेतीली तरंगों पर
तूफानी फुंकारों से
काल के कदमों से
भौतिक स्पंदन पर
उम्र को लिख-लिख, आर-पार छाई हो.