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दर-दर के होगेंव / भोलारम यादव

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पढे लिखेबर नै जानेव संगी,
दस्तखत सीखके होगेंव साक्षर,
साहूकार के खाता मा करदेव
मूइ उठाके हस्ताक्षर।
बेटी मोर बाढ़त रिहीस,
ओखर बिहाव के होगे फिकर,
बने अस लइका मिलगे
बिहाव के चालीस जिकर।

बेटी के बिहाव के खातिर, संगी,
पैसा के पडगे जरूरत,
मिलिस पन्द्राही के मोहलत
ऐसन निकालिस बिहाव के मुहुरत ।
साहूकार कना दौड़ेंव संगी,
कर्जा मांगे वर,
एक हजार के कर्जा लेंव
अउ खाता में करदेव हस्ताक्षर

कर्जा के किश्त पटात गेंव,
हर महीना पेट काट के,
कर्जा के मुक्त नै होयेंव
पांच-पांच कोरी पटाके तीन बच्छर ले।
पंच-सरपंच कना दौड़ेंव,
करत बहुत गुंवार,
पंचायत मा मैय हार गेंव
जीतगे पापी साहूकार।

एक हजार के कर्जा लेंव,
लिख दिस पापी दस हजार,
दर दर के मैय होगेंव संगी
मोर बेचागे सब्बों खेत बार।
बने अक्षर गिनती जानके,
साक्षर बनहु साथी,
मोला चपके तैसे
तुम्हला चपके झन सफ़ेद हाथी