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दरजीक दोकानसँ / पंकज कुमार

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टुटलाहा अराम कुर्सी पर बैसि
धिआन मग्न भ' ओ
सिबि रहल अछि
फाटल-पुरान कोनो चेथड़ी

ओकर तन्मयता सँ सहजहि
होइत अछि भान जे
ओ ओही सिलाइ-मशीनक कोनो हिस्सा अछि
जे सिबि देतैक आइ चेथड़ीक संगहि
चिर्री-चोत भेल देसक लोकतंत्रक लेल
एकटा नव अंगा

किएक
आब नहि देखल जाइत छैक ओकरा
कखनहुँ बम्बई, दिल्ली तँ कखनहुँ भोपालक
होटलमे बेर-बेर उघार होइत ओकर देह

चारू कात पसरल ई प्रपंच
आ चातुर्यक खेड़मे
बहुत थिर भ' मशीन चलबैत काल
लगैत अछि जेना
कोनो कोकरालुझ मचल परिवेशमे
एकटा सुन्दर मद्धिम सुर केँ
साधि रहल अछि संगीत साधक

ओ चिन्तित अछि मुदा अधीर नहि
आब लागल अछि ओहि अंगामे
मैचिंग बटन लगेबाक ब्योंतमे
जकरा एखनहि किनि आनलक अछि
अपन सँझुका एक कटिया ताड़ी लेल
जुगताय क' राखल पाइसँ

ओ क' रहल अछि
अपना भरि प्रयास जे
बचि जाइक आबहु इज्जति

कतेको घाह देल ओहि देहकेँ
अपन बनाओल अंगा सँ झाँपि क'
ओ आनय चाहैत अछि ओकरा अपन घर

ओ मानैत अछि
जे कोनो कीमति पर
अपन रखैल बनाक' रखबा लेल आतुर
राक्षसक जतेक अधिकार अछि
ओहि लोकतंत्र पर
ओहिसँ बेसी हमर अछि

किएक ताहु दिन हम
चारि सय टकाक गहिंकि छोड़ि
गेल छलहुँ भोंट खसेबाक लेल।