भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दर्द खोटा क्यों लगा, सोना खरा कैसे लगा / विनय कुमार
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:50, 29 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय कुमार |संग्रह=क़र्जे़ तहज़ीब एक दुनिया है / विनय क...)
दर्द खोटा क्यों लगा, सोना खरा कैसे लगा।
क्या कसौटी थी हमारे सामने फिर से लगा।
उम्र भर ग़ज़लें कहीं, लेकर भुनाने को गये
छापनेवाले लगे कहने कि तू पैसे लगा।
मौत जैसी नींद की मारी ज़मीनों को जगा
धूप साये में न जिनके पेड़ कुछ ऐसे लगा।