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दाद की तो बात क्या बेदाद तक बाक़ी नहीं / कांतिमोहन 'सोज़'

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दाद की तो बात क्या बेदाद तक बाक़ी नहीं I
इस तरह उजड़ा हूँ दिल में याद तक बाक़ी नहीं II

देख तेरी मुंसिफ़ी से किस क़दर हूं मुतमइन,
अपने लब पर आजकल फ़रियाद तक बाक़ी नहीं I

ये भी थी तक़सीर अपनी ये भी अपनी भूल थी,
क्यूँ बिलआख़िर हम रहे इमदाद तक बाक़ी नहीं I

बेनियाज़ी किस क़दर है बन्दापरवर के यहाँ
लुत्फ़ की तो बात क्या उफ़्ताद तक बाक़ी नहीं I

सोज़ की औक़ात ही क्या थी कि उसका ज़िक्र हो,
इश्क़ की तारीख़ में फ़रहाद तक बाक़ी नहीं I