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दिन नदी गीत फिर / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र

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दिन नदी पार से
  फिर बुलाने लगे
 
 
एक नीली हवा
धूप के सुर लिये
बाँटती फिर रही
खुशबुओं के ठिये
 
जंगलों की खबर
 दिन सुनाने लगे
 
आम के कुंज से
चीड की छाँव से
बाँसुरी-धुन उठी
पास के ठाँव से
 
दिन नदी गीत फिर
 गुनगुनाने लगे
 
घाट घुँघरू हुए
जल महावर हुए
बाँबियों के सिरे तक
दुआघर हुए
 
क्या कहें - हर घड़ी
  दिन सुहाने लगे