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दिन पतझड़ का / अनिल जनविजय

{{KKRachna |रचनाकार=अनिल जनविजय |संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय }

दिन पतझड़ का
पीला-सा था झरा-झरा

छुट्टी का दिन था
वर्षा की झड़ी थी भीग रहा था मस्कवा
चल रही थी बेहद तेज़ ठंडी हवा
खाली बाज़ार, खाली थीं सड़कें
जैसे भूतों का डेरा
खाली उदास मन था मेरा

तुमको देखा तो झुलस गया तन
हुलस गया मन
बिजली चमकी हो जो घन
लगने लगा फिर से जीवन यह भरा-भरा

तुम आईं तो आया वसन्त
दिन हो गया हरा

1996 में रचित