भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिन में साए रात के रातों को ये झिलमिल है क्या / संजय चतुर्वेद
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:04, 22 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेद |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दिन में साए रात के रातों को ये झिलमिल है क्या
देख तो आदम तेरी उम्मत का मुस्तक़बिल है क्या
ये नुमाइश औरतों की दिल में बच्चों के ज़हर
है ख़ुदी का कारनामा तो ख़ुदा बातिल है क्या
लोग ले आए हैं सहरा में समन्दर का सराब
बदचलन ऐसे सितारे रौशनी ग़ाफ़िल है क्या
इस हरारत में कहीं बौरा गया है आदमी
बेदिली गिरती हुई उम्मीद का हासिल है क्या
1996