भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल को आँखें तो मिलीं आप ने फिर क्या देखा / रवि सिन्हा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:30, 4 सितम्बर 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवि सिन्हा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGha...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल को आँखें तो मिलीं आप ने फिर क्या देखा
चश्मे-बातिन<ref>अन्दरूनी आँख (inner eye)</ref> से समन्दर ने तो गहरा देखा

उम्र चढ़ते हुए थी चाँद सितारों पे निगाह
और प्यासे ने उतरते हुए दरिया देखा

बूद<ref>अस्तित्व (existence)</ref> में रफ़्त<ref>प्रस्थान (departure)</ref> हक़ीक़त में तसव्वुर<ref>कल्पना (imagination)</ref> क्यूँ है
फिर अनासिर<ref>पंचतत्व (elements)</ref> से मुशाहिद<ref>प्रेक्षक (observer)</ref> का उभरना देखा

क़सम तो एक ही खायी थी निभाया है उसे
सौ मरासिम<ref>रस्मो-रिवाज़, ताल्लुक़ात (custums, relations)</ref> थे मगर टूटना जिनका देखा

दिल की जागीर के मालिक तो अकेले हम थे
हर तमन्ना पे मगर अक़्ल का पहरा देखा

अब तमाशे भी कोई चैन से देखे कैसे
हर तमाशे में कोई और तमाशा देखा

उन चराग़ों की गवाही तो सहर सुन लेती
कौन है जिसने अँधेरे में अँधेरा देखा

शब्दार्थ
<references/>