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दिल लगा कर पढ़ाई करते रहे / ज़हीर रहमती

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दिल लगा कर पढ़ाई करते रहे
उम्र भर इम्तिहाँ से डरते रहे

एक अदना सवाब की ख़ातिर
जाने कितने गुनाह करते रहे

जान पर कौन दम नहीं देता
सूरत ऐसी थी लोग मरते रहे

कोई भी राह पर नहीं आया
हादसे ही यहाँ गुज़रते रहे

हैरतें हैरतों पे वारफ़्ता
झील में डूबते उभरते रहे

आख़िरश हम भी इतना सूख गए
लोग दरिया को पार करते रहे

क्या न था इस जहाँ में आख़िर
हम भी क्या ही तलाश करते रहे

आख़िर एज़ाज़ उस ने बख़्श दिया
कैसा ख़ुद को ज़लील करते रहे