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दिलों में तो दु:ख का ही आवास होगा / पवनेन्द्र पवन
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दिलों में तो दु:ख का ही आवास होगा
दिखाने को चेहरों पर उल्लास होगा
मरुस्थल में प्यासो ! फ़क़त रेत होगी
भले दूर से जल का आभास होगा
उसे दु:ख धरा का सुनाना पहाड़ो!
कि अम्बर तुम्हारे बहुत पास होगा
गिरों को उठाने की बातें न करना
न हमसे सहन और उपहास होगा
है मर्यादा तो राम की तेरा शोषण
सिया! तुझको कब इसका एहसास होगा
वो मेहनतकशों की ही बातें करेगा
‘पवन’ की ग़ज़ल न कुछ ख़ास होगा