भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल्ली पहुँचेंगे कैसे? / प्रकाश मनु

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:46, 16 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश मनु |अनुवादक= |संग्रह=बच्च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बंदर मामा टिकट कटाकर
चढ़े रेलगाड़ी पर,
घूम आएँगे सारी दिल्ली
सोचा, खेल दिखाकर।

गाड़ी चल दी, खूब जोर से
खाती वह हिचकोले,
खूब डरे मन ही मन मामा
घबराकर यों बोले-

मारे यहीं गए तो दिल्ली
पहुँचेंगे हम कैसे?
खिड़की से झट कूद पड़े,
बच पाए जैसे-तैसे।