भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दीप, तुम्हारे संघर्ष के कितने वितान / अनुपमा पाठक

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:52, 11 नवम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुपमा पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तम के प्रभाव में
दीये का वज़ूद...

बाती जल रही है फिर भी वहां
कैसे ये अँधेरे मौज़ूद... ??

ऐसे कितने ही
द्वन्द से
जूझते हैं मन प्राण...

दीप!
तुम्हारे संघर्ष के
कितने वितान... !!

लौ की आस को
धारण किये रखना...
कितना कठिन होता होगा
उजाले की राह तकना...

सब पुरुषार्थ
अपनी नन्ही काया और
द्विगुणित माया से
सहज ही कर जाते हो...

दीप!
तुम मन के अँधेरे कोनों में
अपनी निश्छलता से
किरणें भर जाते हो...

छोटा सा जीवन
और बड़े बड़े इम्तहान...
दीप! तुम अपनी लघुता में ही
हर वृहद् सन्दर्भ से महान... !!