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दीमकों के नाम हैं वंसीवटों की डालियाँ / शिव ओम अम्बर

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दीमकों के नाम हैं वंसीवटों की डालियाँ,
नागफनियों की क़नीजें हैं यहाँ शेफालियाँ।

छोड़कर सर के दुपट्टे को किसी दरगाह में,
आ गई हैं बदचलन बाज़ार में कव्वालियाँ।

गाँठ की पूँजी निछावर विश्व पे कर गीत ने,
भाल अपने हाथ से अपनी लिखीं कंगालियाँ।

पूज्य हैं पठनीय हैं पर आज प्रासंगिक नहीं,
सोरठे सिद्धान्त के आदर्श की अर्धालियाँ।

इस मोहल्ले में महीनों से रही फ़ाक़ाक़शी,
इस मोहल्ले को मल्हारें लग रही हैं गालियाँ।