भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दीया बाती बुतलोॅ जाय - लोरी / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:53, 9 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दीया बाती बुतलोॅ जाय,
नूनू आवेॅ सुतलोॅ जाय।
नींदिया रानी चललोॅ आव,
नूनू लुग में गीत सुनाव।
लेले आवें खीर-मिठाय,
हाँसी-हाँसी नूनू खाय।
घोड़ा आवै नूनू लेॅ,
मोती-रथ में जुतलोॅ जाय।
आ गे गैया दूध दहीं,
वैसने जों नै मिलै कहीं।
भैंसी केरोॅ दही जुटाव,
आरो सुरका चूड़ा फाव।
किसिम-किसिम के मीट्ठोॅ-चुक्कोॅ
नूनू सें सब छुतलोॅ जाय।