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दुख का विरह / शुभा

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कहाँ है वह दुख
चट्टानों से टक्कर मारता
भरी-पूरी नदी जैसा

और ये क्या है
बून्द-बून्द टपकता
मरे हुए साँप के
विष जैसा।