भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुख का विरह / शुभा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:30, 8 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शुभा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कहाँ है वह दुख
चट्टानों से टक्कर मारता
भरी-पूरी नदी जैसा
और ये क्या है
बून्द-बून्द टपकता
मरे हुए साँप के
विष जैसा।