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दुनिया बे-ईमान की / शिशुपाल सिंह यादव ‘मुकुंद’

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1.
सिसक झोपडी चुप सोती है
मानवता कराहती रोती है
सेठो की है महल अटारी
चले सड़क पर मोटर गाडी
कीमत नहीं अन्नदाता उस -निस्पृह दीन- किसान की
सम्हल -सम्हल कर पग रखना है,दुनिया बे-ईमान की
2.
स्वार्थी भूले भगत सिंह को
आजादी के चरण -चिन्ह को
कौन चन्द्रशेखर न जानना
निज स्वार्थ को बड़ा मानना
स्मृति में नहीं दिखती है, कथा शुद्ध बलिदान की
सम्हल -सम्हल कर पग रखना है,दुनिया बे-ईमान की
3.
खाओ -पियो मौज करो बस
निचोड़ लो चालाकी से रस
कल-पुर्जो का कलयुग ठहरा
यन्त्र -भावना निहित गहरा
पूजा होती नहीं ह्रदय से,कभी यहां भगवान की
सम्हल -सम्हल कर पग रखना है,दुनिया बे-ईमान की
4.
सतत युद्ध की है विभीषिका
शांत न चीन,पाक-अमरिका
विश्व -शांति की धुंधली रेखा
कब मिट जावे शंकित लेखा
नहीं कुशलता भाषित होती, मानव -पावन प्राण की
सम्हल -सम्हल कर पग रखना है,दुनिया बे-ईमान की
5.
था सुकरात हेतु विष- प्याला
ईसा हेतु क्रास की माला
गांधी की छाती पर गोली
यहाँ सत्य की हरदम होली
कौड़ी की इज्जत न यहाँ है,सच्चे शुचि इंसान की
सम्हल -सम्हल कर पग रखना है,दुनिया बे-ईमान की