भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुनिया में यूँ भी हमने गुज़ारी है ज़िन्दगी / मोहम्मद इरशाद
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:12, 12 जून 2020 का अवतरण
दुनिया में यूँ भी हमने गुजारी है ज़िन्दगी
अपनी कहाँ है जैसे उधारी है ज़िन्दगी
आवाज़ मुझको ना दे ऐ गुज़रे वक्त सुन
मुश्किल से हमने अपनी सँवारी है ज़िन्दगी
कोई ख़ुशी भी पहलू में आई नहीं कभी
मेरी नज़र में अब भी कुँवारी है ज़िन्दगी
सोचो तो जी रहे है तुम्हारे ही वास्ते
जब चाहो माँग लेना तुम्हारी है ज़िन्दगी
हर एक तन्हा छोड़ के कहता है अलविदा
कितनी ये बदनसीब बेचारी है ज़िन्दगी
कैसा ये बोझ दिल पे तिरे है ज़रा बता
‘इरशाद’ आज इतनी क्यूँ भारी है ज़िन्दगी