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दुलत्ती के बीच / राम सेंगर

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देवता ही
कर रहे हैं कूच
कुछ ऐसा समय है
कुछ कहा जाता नहीं
क्या हो गया है !

क्या कहें ,
इस खौलते जलकुण्ड में डाले गए थे
या हमीं को
यह नियति मँज़ूर थी ।
कुण्ड से
बाहर निकलने की तड़प में पार पकड़ी
जान आई
दूर जो हमसे बहुत ही दूर थी ।

क्या कहें ,
जीवन-मरण की दुलत्ती के बीच
कँचा खोजने की ,
नेत्र अन्तर्शक्तियोँ के बन्द-से हैं,
प्रभु कृपा है ।

कुछ कहा जाता नहीं
क्या हो गया है ।