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दूधिया चाँदनी फिर आई / शिव बहादुर सिंह भदौरिया

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दूधिया चाँदनी फिर आई ।
मेरी पिछली यात्राओं के
कुछ भूले चित्र-
उठा लाई ।

मैं मुड़ा अनेक घुमावों पर,
राहें हावी थीं पाँवों पर,
फिर खनका आज यहाँ कंगन,
निर्व्याख्या है मन के कंपन,
किन संदर्भों की कथा-
काँपते तरू-पातों ने दुहराई ।

जादू-सा दिखे जुन्हैया में
सपने बरसें अँगनैया में,
त्रिभुवन की श्री मेरे आँगन-
ज्यों सागर लहरे नैया में,
नैया भी
साथ खिवैया के
छिन डूब गई, छिन उतराई ।

सुन पड़ते शब्द बहावों के,
दो पाल दिख रहे नावों के,
धारा में बह-बहकर आते-
टूटे रथ किन्हीं अभावों के,
मेरी बाँहें
तट-सी फैलीं,
नदियाँ-सी कोई हहराई ।