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दूर क्षितिज पर सूरज चमका सुबह खड़ी है आने को / गौतम राजरिशी

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दूर क्षितिज पर सूरज चमका, सुब्‍ह खड़ी है आने को
धुंध हटेगी, धूप खिलेगी, वक़्त नया है छाने को

साहिल पर यूँ सहमे-सहमे वक़्त गंवाना क्या यारों
लहरों से टकराना होगा पार समन्दर जाने को

पेड़ों की फुनगी पर आकर बैठ गयी जो धूप ज़रा
आँगन में ठिठकी सर्दी भी आये तो गरमाने को

हुस्नो-इश्क़ पुरानी बातें, कैसे इनसे शेर सजे
आज ग़ज़ल तो तेवर लायी सोती रूह जगाने को

टेढ़ी भौंहों से तो कोई बात नहीं बनने वाली
मुट्ठी कब तक भीचेंगे हम, हाथ मिले याराने को

वक़्त गुज़रता सिखलाता है, भूल पुरानी बातें सब
साज़ नया हो, गीत नया हो, छेड़ नये अफ़साने को

अपने हाथों की रेखायें कर ले तू अपने वश में
तेरी रूठी किस्मत "गौतम" आये कौन मनाने को






(अहा ज़िंदगी जुलाई 2011, लफ़्ज़ सितम्बर-नवम्बर 2009)