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देखि-देखि मुँह पियरायल, चेरिया बिलखि पूछे हे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

देखि-देखि मुँह पियरायल, चेरिया बिलखि पूछे हे।
रानी, कहहु तूँ रोगवा के कारन, काहे मुँह झामर<ref>झाँवर, मलिन</ref> हे॥1॥
का कहुँ गे<ref>सम्बोधन का शब्द</ref> चेरिया, का कहुँ, कहलो न जा हकइ हे।
चेरिया, लाज गरान<ref>ग्लानि</ref> के बतिया, तूँ चतुर सुजान<ref>सुज्ञानी, सुजान</ref> हहीं गे॥2॥
लहसि<ref>आनंदित होकर</ref> के चललइ त चेरिया, त चली भेलइ झमिझमि<ref>झमिझमि = हंसगामी चाल में आभूषणों को बजाती हुई।</ref> हे।
चेरिया, जाइ पहुँचल दरबार, जहाँ रे नौबत<ref>शहनाई</ref> बाजहइ हे॥3॥
सुनि के खबरिया सोहामन<ref>सुहाना</ref> अउरो मनभावन हे।
नंद जी उठलन सभा सयँ<ref>से</ref> भुइयाँ<ref>भूमि पर</ref> न पग परे हे॥4॥
जाहाँ ताहाँ भेजलन धामन,<ref>धावन, संदेश-वाहक</ref> सभ के बोलावन हे।
केहु लयलन पंडित बोलाय, केहु रे लयलन डगरिन हे॥5॥
पंडित बइठलन पीढ़ा<ref>पद-पीठ, लकड़ी का बना ऊँचा आसन</ref> चढ़ि, मन में विचारऽ करथ<ref>करते हैं</ref> हे।
राजा, जलम लेतन<ref>लिया</ref> नंदलाल जगतर<ref>जगत</ref> के पालन हे॥6॥
जसोदाजी बिकल सउरिया,<ref>सौरीघर, प्रसूति-गृह</ref> पलक धीर धारहु हे।
जलम लीहल तिरभुवन नाथ, महल उठे सोहर हे॥7॥
सुभ घड़ी सुभ दिन सुभ बार सुभ रे लगन आयल रे।
धनि हे, प्रगट भयेल<ref>हुए</ref> बिसुन देओ,<ref>विष्णुदेव</ref> अनन्द तीन लोक भेल हे॥8॥
हरखि हरखि देओ बरसथ<ref>बरसाते हैं</ref> फूल बरसावथ<ref>बरसाते हैं</ref> हे।
ललना, सुर मुनि गावथि<ref>गाते हैं</ref> गीत, मन ही मन गाजथि<ref>गाजते हैं, गद्गद होते हैं</ref> हे॥9॥
बाजन बाजये अपार नागर<ref>नागर, दक्ष</ref> नट नाचत हे।
नाचहि गाय<ref>गाकर</ref> पमड़िया<ref>पँवरिया, पुत्रोत्पत्ति के अवसर पर नाच-गान करने वाली जाति</ref> महल उठे सोहर हे॥10॥
नंदजी लुटवलन अनधन अरु गजओबर<ref>बड़ा घर या कमरा। मिला. - ओबरी = तंग और अंधेरी कोठरी। ओबरी उपवटी-उवबड़ी-ओबड़ी-ओवरी-ओवर। वा ओबर-ओवर अ-अवर अ-अपवरक =भीतरी घर, ‘गर्भागारेऽपवरक; विकांड। किन्तु, यहाँ गजओहर पाठ हो सकता है, जो ‘गज गौहर’ का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ यहाँ गजमुक्ता होगा। संभव है, गज ओवर पाठ ही हो और वह ‘गजोपल-गर्ज$उपल’ का अपभ्रंश हो।</ref> हे।
जसोदा जुटवन भंडार सकल सुख आगर हे॥11॥
सोने के थरिया<ref>थाली</ref> भरी मोतिया, पंडितजी के आगेधरि हे।
पंडित लेहु न अपन दछिनमा,<ref>दक्षिणा</ref> पुतरफल पायल हे॥12॥
बाजन बाजय गहागही<ref>उल्लास के साथ, धूमधाम के साथ</ref> नंद सुख भूलल हे।
जसोदा सउरिया मैं पइसल,<ref>भीतर बैठी-बैठी</ref> सरग<ref>स्वर्ग</ref> सुख लूटथ हे॥13॥

शब्दार्थ
<references/>