भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखूँ सबके उर की डाली / सुमित्रानंदन पंत

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:01, 10 जून 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखूँ सबके उर की डाली--
किसने रे क्या क्या चुने फूल
जग के छबि-उपवन से अकूल?
इसमें कलि, किसलय, कुसुम, शूल!
किस छबि, किस मधु के मधुर भाव?
किस रँग, रस, रुचि से किसे चाव?
कवि से रे किसका क्या दुराव!
किसने ली पिक की विरह-तान?
किसने मधुकर का मिलन-गान?
या फुल्ल-कुसुम, या मुकुल-म्लान?
देखूँ सबके उर की डाली--
सब में कुछ सुख के तरुण-फूल,
सब में कुछ दुख के करुण-शूल;--
सुख-दुःख न कोई सका भूल?

रचनाकाल: फ़रवरी’ १९३२