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देशभक्ति का राग / पुरुषार्थवती देवी

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छेड़ दो एक बार फिर तान।
सुन्दर, सुखद, सरस, शुचि, सुमुधुर देश-भक्ति की तान॥
निर्जीवी जीवित हों जिससे, निर्बल हांे बलवान॥
ऊँच-नींच का भेद मिटाकर होवें सकल समान।
ग्रन्थित होकर एक सूत्र में, समझें निज कल्याण॥
यही चाह हो, यही ध्येय हो, मातृ-भूमि-सम्मान।
देश-वेदि पर कर दो मिलकर, तन मन अर्पण प्राण॥
कष्ट-क्लेश का भारत के हो जाने पर अवसान।
तभी होगा भारत-उत्थान॥