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दोहा / भाग 8 / राधावल्लभ पाण्डेय

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देइ उड़ाइ न धज्जियाँ, करि कुतर्क विज्ञान।
डरन छिपाये मुँह परे, परदे में भगवान।।71।।

साँचे को कुछ डर नहीं, कोऊ लेय बयान।
कछु काला है दाल में, प्रकटत नहिं भगवान।।72।।

कियो जलन्धर बधन हित, छल वृन्दा के साथ।
याही डरन फरार है, मिलत न लक्ष्मी नाथ।।73।।

समुहै आवत कौन, छिपि सबै दिखावत हाथ।
मुँदे मुँदे माया करत, खुलत न माया नाथ।।74।।

रोटी हित संसार में, बढ़ो जुलुम को जोर।
बढ़-बड़े ‘दाना’ पिसत, चक्की में उठि भोर।।75।।

सहत ओखरिन मूड़ दै, मूमर मार अनीव।
‘दानन’ के बलिदान पर, रोटी की है नीव।।76।।

गाँधी, बोस, पटेल, अरु खान, जवाहरलाल।
हल करने में पचि रहे, रोटी कठिन सवाल।।77।।

चखत हवस को टोप दै, परि चक्कर की गैल।
रोटी हित भरमत मनुज, बनि कोल्हू को बैल।।78।।

लेत उसासें धौकनी, रन्दा रगरत नाक।
रोटी को सिक्का लखे, चक्कर में है चाक।।79।।

रोटी हित अकरम करम, करत न कोउ बिचार।
बड़े-बड़े मानी धनी, पीसत बीच बजार।।80।।