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दौलत और नींद / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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दौलत के नशे में नींद नहीं आती ।

फकी़र को लुटने का डर नहीं होता ॥

फुटपाथ पर हमको सोने दे हुज़ूर ।

मुफ़लिसों का कहीं भी घर नहीं होता ।।

उपवन मत जलाओ कुछ शूल के लिए ।

यों कोई शहर बेहतर नहीं होता ।।

काबुल में खिलें या काशी में मह़कें ।

फूल के हाथ में खंज़र नहीं होता ॥

नाग पालकर वे चाहते रहे अमन ।

ज़िन्दगी का इलाज ज़हर नहीं होता ॥

हो चुके हैं लोग अब इतने बेहया ।

चीख- पुकार का भी असर नहीं होता ॥