भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धन्य आत्मा / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:15, 21 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काम क्रोध वश करै, दाम धरि धाम न राखै। दया धर्म सामर्थ्य, अर्थ मुख झूठ न भाखै॥
पर-निन्दा परिहरै, करै ममता कछु नाही। नहि विलखै नहि हँसै, वसै सत संगति माहीँ॥
सहज भाव सब साँ मिलै, दाव बिना विनु विग्रही।
धरनी धन सो आतमा, ऐसो राम-अनुग्रही॥18॥