भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धन्य है विधना तेरे लेख / शिवदीन राम जोशी

Kavita Kosh से
Kailash Pareek (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:19, 18 मई 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धन्य है विधना तेरे लेख।
पढे़ नहीं जा सकते पढ़के, थाके गुनी अनेक।
जिसके भाग्य लिखा सोही होता, लाख लगाये ज्ञानी गोता,
विधी के लिखे कुअंक मिटादे, सो लाखों में एक।
ये चक्कर कर्मो का लेखा, मति अनुकूल समझ से देखा,
गुरू कृपा समझा कुछ तो भी, रहे आंख से देख।
कर्महीन जन शब्द न माने, अनहित और लगे वो जाने,
शुभ पल मिले तजे वहीं श्रद्धा, इसमें मिन न मेख।
याते मौन साधकर रहियो, कभी किसीसे कुछ ना कहियो,
कहे शिवदीन कहा क्या माने, ईश्वर राखे टेक।