भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धरती के भरोसे के लिए / संतोष कुमार चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:32, 30 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष कुमार चतुर्वेदी |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब सब अपने-अपने चाम के भीतर
ख़ून मास और हड्डी हो रहे थे
कवि सुना रहे थे दूसरों को
अपनी कविताएँ

जब सब अपनी छतें बचाने के लिए
कर रहे हैं भाग-दौड़
कवि लिख रहे हैं
आकाश तले कविताएँ

रास्ते जब हो गए हैं असुरक्षित
किसी सफ़र से
वापस लौटकर आना
बीज से अंकुर फूटने जैसा है
 
ऐसे समय में कवि की रचनाएँ
आ-जा रही हैं
सही ठिकानों पर
तोड़कर सीमाएँ

जब भरोसेमन्द नहीं रहे सम्बन्ध
कवि काग़ज़ के लिफ़ाफ़े पर
स्याही से अपना पता लिखकर
ज़्यादा विश्वास जतलाता है

एक दूसरे से जूझ रहे हैं
जब सब
प्रतियोगी संसार में
कवि लिख रहे हैं
प्रेम कविताएँ
धरती के भरोसे के लिए