भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धरती शृंगार करी कामिनी के रूप धरी / अनिल शंकर झा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:24, 24 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल शंकर झा |अनुवादक= |संग्रह=अहि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धरती शृंगार करी कामिनी के रूप धरी
अंगे अंग आंग धारी जियरा जुड़ाय छै।
उपरोॅ सें मेघराज लागै जेना कामराज
चहु दिशि कामवाण ताकि बरसाय छै।
पछिया निगोड़ा कभी लट बिखराबै कभी
अचरा उड़ावै मुआ यौवन लजाय छै।
पोर-पोर सुलगै छै आजु मन सहकै छै
आजु मीत संयम न तनियो सुहाय छै।