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धाई जित-तित तैं विदाई-हेत ऊधव की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

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धाई जित-तित तैं विदाई-हेत ऊधव की
गोपीं भरीं आरति सम्हारति न सांसुरी ।
कहै रतनाकर मयूर-पच्छ कोऊ लिए
कोऊगुंझ-अंजलीं उमाहे प्रेम-आंसुरी ॥
भाव-भरी कोऊ लिए रुचिर सजाव दही
कोऊ मही मंजु दाबि दलकति पांसुरी ।
पीत-पट नन्द जसुमति नवनीत नयौ
कीरति कुमारी सुरबारी दई बांसुरी ॥97॥