भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धुंध / नीना कुमार

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:20, 11 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीना कुमार }} {{KKCatGhazal}} <poem> धुन्ध की दीव...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धुन्ध की दीवार से घिर गया है घर,
उठ खड़ी हुई फिर इक सुबह बेमहर

मुंतज़िर<ref>प्रतीक्षारत</ref> हो धूप की, कहो क्या तुम अभी
मुस्करा रहे हैं बादल, हम से ये पूछ कर

हर गुल है शबनमी, बर्फ बर्फ सी है सबा,
मौसम-ए-सर्द में हो गई है दीदा-ए-तर<ref>भीगी आँखें</ref>

हंगामा-ए-वीरानियाँ, दश्त-ए-खामोशियाँ
ख्वाब सा हुआ अजनबी मेरे ख्याल का शहर

अंजाम-ए-आग़ाज़ एक परबत-ए-याद है
उस पार कहीं उफ़क़ पर है कोई नया दहर<ref>दुनिया</ref>

शब्दार्थ
<references/>