भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धुएँ के ख़िलाफ़ / शरद कोकास

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:03, 2 जनवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शरद कोकास |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> अगली...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
अगली शताब्दी की हरकतों से
पैदा होने वाली नाजायज़ घुटन में
सपने बाहर निकल आएँगे
पारम्परिक फ़्रेम तोड़कर
कुचली दातून के साथ
उगली जाएँगी बातें
मानव का स्थान लेने वाले
यंत्र-मानवों की
सुपर-कम्प्यूटरों की
विज्ञान के नए मॉडलों
ग्रहों पर प्लॉट खरीदने की
ध्वनि से चलने वाले खिलौनों की

मस्तिष्क के खाली हिस्से में
अतिक्रमण कर देगा
आधुनिकता का दैत्य
नई तकनीक की मशीन पर
हल्दी का स्वास्तिक बनाकर
नारियल फोड़ा जाएगा

ऊँची-ऊँची इमारतों से
नीचे झाँकने के मोह में
हाथ–पाँव तुड़वा कर
विपन्नता पड़ी रहेगी
किसी झोपड़पट्टी में
राहत कार्य का प्लास्टर लगाए

कहीं कोई मासूम
पेट से घुटने लगा
नींद में हिचकियाँ ले रहा होगा
टूटे खिलौनों पर शेष होगा
ताज़े आँसुओं का गीलापन

मिट्टी के तेल की ढिबरी से उठता धुआँ
चिमनियों के धुएँ के ख़िलाफ़
सघन होने की राह देखेगा ।