भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धेरै भयो चिठ्ठी आएन / वसन्त चौधरी

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:39, 12 नवम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वसन्त चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धेरै भयो चिठ्ठी आएन
तिम्रो खबर पत्तो भएन
कता लुक्यौ हरायौ कहाँ
छट्पटी मलाई यहाँ
(हरायौ कहाँ) २

(हिँउदमा आँउछु भन्थ्यौ
बर्खा पनि लागी सकेछ
बढ्दा बढ्दा रहर अब
@साहित्य सङ्ग्रहालय
अकाशिन थाली सकेछ) २
अब यो मन ले सहेन
थामिएन आँसु यहाँ
(हरायौ कहाँ) २

(मेरो जस्तै तिम्रो पनि
मन भए कती हुन्थ्यो नि
सम्झनाले सताएर
यती एक्लो कहाँ पारथ्यौ नि) २
पर्‍यो साँझ दीप जलेन
मनै मेरो भएन यहाँ
(हरायोउ कहाँ) २