Last modified on 10 नवम्बर 2014, at 13:41

न पूछो हमसे कैसे जी रहे हैं / रविकांत अनमोल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:41, 10 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविकांत अनमोल |संग्रह=टहलते-टहलत...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

न पूछो हमसे कैसे जी रहे हैं
ये लम्हे ज़हर हैं हम पी रहे हैं

समझ उनको न आई तो न आई
ज़बां हम बोलते दिल की रहे हैं

ख़ुशी पल में चली जाती है आकर
हमारे साथ तो ग़म ही रहे हैं

हमें जब ज़िंदगी लगती थी भारी
कभी हालात ऐसे भी रहे हैं