भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नई सदी के नये गीत हैं / शैलेन्द्र शर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:05, 21 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेन्द्र शर्मा |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नई सदी के
नये गीत हैं
कहीं ताप हैं , कहीं शीत हैं

कुहरीले हैं कहीं
कहीं पर
मधुऋतु जैसे धूप-धुले हैं
रोशनदानों
और खिड़कियों
दरवाजों से खुले-खुले हैं

ऊँची-नीची
पगडण्डी पर
कहीं हार हैं , कहीं जीत हैं

देशकाल में
विचरण करते
संवेदन में ये प्रवीण हैं
ये किंकर हैं
ये ही शंकर
नित्य सनातन , चिर नवीन हैं

इनकी आन-बान
अपनी है
यें पंकिल हैं , पर पुनीत हैं

चट्टानों को
पिघलायेंगे
दलदल का पानी सोखेंगे
परती-ऊसर में
ये उगकर
धरती का श्रंगार करेंगे

ये कबीर हैं
ये कलाम हैं
अधुनातन हैं , शुभ अतीत हैं