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नए सपने / रमेश क्षितिज / राजकुमार श्रेष्ठ

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मैं वहीं था
एकदम वहीं — तुम्हारे आसपास
गुमसुम-सा — उदास, अकेला और निरीह
भव्य महल से सटा अरीश-सा
मुस्टण्डा पेड़ के साये तले
सीलन सहकर कुपोषित पौधे जैसा
मैं वहीं था — बत्ती के नीचे अँधेरे जैसा

मैं वहीं था
किसी दन्तकथा के शापित पत्थर जैसा
वर्षों से मुझे इन्तज़ार था तुम्हारे स्पर्श का

जन्म-जन्मान्तर अनेक जीवन बिताए होंगे
मैंने जागने की तृष्णा लिए यहाँ
तुम्हारे पास
पर, तुम्हीं से छुपते, तुम्हीं से दबते

वैसे ही भूलते हैं लोग मुझे
जैसे याद नहीं रहते
घर पहुँचते ही रास्ते के वे रैन बसेरे
जहाँ रात बसर की थी
सफ़र भर में फैले कई पथरीले चबूतरे
प्यास बुझाती कुइयाँ
या रास्ते में छोड़े क़दमों के निशान

मैं वहीँ था तुम्हारे अगल-बगल
कितने जन्म भटकते चला होऊँगा न मिला प्रेम ढूँढ़ते
अतृप्त, अशान्त और असहाय
बेर के काँटो में उलझकर लहूलुहान हुआ होऊँगा
उलझा होऊँगा साँझों में
कभी रास्ता भूलकर थका होऊँगा साहिलों में

फ़र्सुदा मन्दिर की तरह मेरी देखभाल करो !
मैं अनन्त सम्भावनाओं का उजला दरीचा
किसी सुनहरी चाबी से खोलकर ताला मेरे हृदय का
प्रवेश करो मेरे हृदय में !
वर्षों से किसी कोने में रखे-रखे
धूल-ही-धूल की
परतों से ढकी मैं एक सारंगी
मुझे सहलाओ और निकालो इक प्रिय धुन !

मूल नेपाली भाषा से अनुवाद : राजकुमार श्रेष्ठ