भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नए साल की सुबह : एक चित्र / सांवर दइया

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:06, 25 मार्च 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इकतीस दिसम्बर की रात
की जमी हुई झील को पार कर
पूर्व की देहरी
की ओर जा रहे सूरज संग चली
नव वर्ष की भोर-दुल्हन
देहरी तक पहुंचते-पहुंचते
ठर कर अचेत हो गई

लगा है सूरज
अपनी देह से उसकी देह गरमाने

लो,
धीरे-धीरे छंटने लगा कोहरा
फूटने लगा हल्का-हल्का उजास
सुगबुगाहट-सी हुई देख देह में

संतोष की सांस ली सूरज ने
खिल-खिल उठे लोग
भोर-दुल्हन के दर्शन कर

छ्त-आंगन और चौक में
खेलने लगे बच्चे
खिलखिलाती धूप में
खिलखिलाने लगे बच्चे !