भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदी / लीलाधर मंडलोई

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:49, 26 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=एक बहुत कोमल तान / लीलाधर …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लाख कोशिश की
कि चल जाए
दवाइयों का जादू
सेवा से हो जाएं ठीक
नहीं हुआ चमत्‍कार लेकिन


मां की आंखें
उस गंगाजली पर थीं

जिसे भर लाई थीं वे
अपनी पिछली यात्रा में

धर्म में रहा हो उनका विश्‍वास
ऐसा देखा नहीं

वे बचे-खुचे दिनों में
रखे रहीं उस कुदाल को

जिससे तोड़ा उन्‍होंने कोयला
पच्‍चीस बरस तक काली अंधेरी खानों में

मां जल से उगी हैं
नदी को वे मां समझती थीं
00