भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ननदिया माँगे फुलझड़ी हे, हम न देवइ / मगही
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:20, 11 जून 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मगही |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{KKCatSohar}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
ननदिया माँगे फुलझड़ी हे, हम न देवइ<ref>दूँगी</ref>।
झलाही<ref>हठीली अथवा झल्लानेवाली या जरलाही = जली हुई। एक प्रकार की गाली</ref> माँगे मोती लड़ी हे, हम न देवइ॥1॥
राजाजी, सोवे कि जागे हे, हम न देवइ।
अप्पन<ref>अपनी</ref> बहिनी के बरजू<ref>मना करो</ref> हे, हम न देवइ॥2॥
शब्दार्थ
<references/>