भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नम अँधेरे में उम्मीद / राकेश रोहित

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:56, 24 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश रोहित |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झर गया हूँ
पत्ते से कहता हूँ
पर टूटा तो नहीं हूँ!

टूट गया हूँ
पेड़ से कहता हूँ
पर उखड़ा तो नहीं हूँ!

उखड़ गया हूँ
जड़ से कहता हूँ
पर सूखा तो नहीं हूँ!

सूख गया हूँ
बीज से कहता हूँ
और चुप रहता हूँ!

इस नम अँधेरे में जन्मना है तुम्हें फिर
कहता है इस बार बीज।