भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नया वर्ष / शिवनारायण जौहरी 'विमल'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:38, 9 जनवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवनारायण जौहरी 'विमल' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बुझ चुकी है आग जंगल में पलाश के
उतरता जा रहा है रंग टेसू के
छीन कर होलिका की गोद से
पहलाद को अपने आँचल में
छिपा लिया है धरती ने
नया वर्ष मुस्काने
लगा है पालने में।

आगए स्वाद के सरताज
मीठे आम के दिन
जामुन जाम के दिन
संतरे तरबूज खरबूजे के दिन

पानी की सतह पर
काँटों का ताज पहने
तिकोने सिंघाडों की बेल
फेलती जा रही है।
कच्ची मूंगफली खोदकर
सिंघाडों के साथ खाने के दिन।

अलता लगाए गुड़हल के पैर
थिरकने लगे हैं
नए वर्ष का स्वागत।

बैगनी क्यारियों में
सर उठाने लगी है केशर

पझड के पत्तों की चीख सुन
गेंदे ने मलहम लगा कर कहा
रोने से कुछ नहीं होगा
उम्र का चौथा चरण
पीला हो कर सूख जाता है
कोई बच नहीं सकता
इस अनिवार्यता से
समय के साथ
उतर जाते है सारे रंग॥