भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नहीं है आस रोटी की, बुझे ना प्यास पानी से / अवधेश्वर प्रसाद सिंह

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:11, 19 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवधेश्वर प्रसाद सिंह |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहीं है आस रोटी की, बुझे ना प्यास पानी से।
गुजारा हो भला कैसे, किसी की राजधानी से।।

कभी इस हाथ से हमने, महल जिनके बनाये थे।
महल मुमताज की खातिर, पढ़ो उनकी कहानी से।।

बड़ी सुंदर बढ़ी रौनक, कहे इतिहास भी अबतक।
अंगूठा हाथ के काटे, कहो कितनी रवानी से।।

हमें तो याद है अबतक, भुला तुमने दिया मुझको।
इसी रोटी की खातिर टूट बिखरे ज़िंदगानी से।।

अभी तक वक्त को कैसे बिताया एक ‘अवधेश्वर’।
सुनेगा कौन अब मेरी, कहानी बदजुवानी से।।