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ना कोई सम्बोधन, ना कोई हुँकारा / प्रेम शर्मा
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ना बहुरे
फिर वे दिन
बीता
जीवन सारा...
छोटे-छोटे
अभाव,
ऋणयाचक की
भाषा,
भूले
अपना स्वभाव,
भूले
बारहमासा,
ख़ामोशी में
विलीन -
साहिब का
इकतारा...
ओझल
रमते जोगी
ओझल
बहता पानी
ना जाने
राम कहाँ
अब वे
पंछी-प्राणी,
ना कोई
सम्बोधन
ना कोई
हुँकारा...
(धर्मयुग, 4 मार्च, 1973)