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नागरिकता / विवेक निराला

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मक़बूल फ़िदा हुसैन के लिए

दीवार पर एक आकृति जैसी थी
उसमें कुछ रँग जैसे थे
कुछ रँग उसमें नहीं थे।

उसमें कुछ था और
कुछ नहीं था
बिल्कुल उसके सर्जक की तरह।

उस पर जो तितली बैठी थी
वह भी कुछ अधूरी-सी थी।
तितली का कोई रँग न था वहाँ
वह भी दीवार जैसी थी
और दीवार अपनी ज़गह पर नहीं थी।

इस तरह एक कलाकृति
अपने चित्रकार के साथ अपने होने
और न होने के मध्य
अपने लिए एक देश ढूँढ़ रही थी।