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नाच रे बेंदरा / ध्रुव कुमार वर्मा

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ठलहा हांसय, रोय कमईया,
नाच रे बेंदरा थईया, थईया।

नवा जमाना अइसन आगे,
बुढ़वा मन के राज पहागे,
भागे मछरी जांघ अस मोठ,
बइहा लेगे तरहा के गोठ।
अब के टूरा मन इतराथे,
बड़े बड़े मन ला बिजराथे।
ददा बपुरा जोतय खेत,
अउ ओकर टूरा ल देख।
साहेब असन भेष्ज्ञ बनाए,
टोटा के आवत ले खाए।
गोल्लर अस मेंछरावत हावय,
फिल्मी गीत ल गावत हावय।
साल साल के होइस फेल
पइसा हजम, खतम हे खेल।


चेथी के मांस ल बनिस खवइया,
नाच रे बेंदरा थईया थईया॥1॥

नवा बहुरिया के सुनले हाल,
फूले हावय दूनो गाल।
कइथे इसनो फंदरा नइए,
मन के लायक लुगरा नइए।
बूता काम ल करय नहीं,
सास ल कथे मरय नहीं।
घर मं ओकर मूड़ पिराथे,
बाहिर मं ददरिया गाथे।
गोड़ हाथ ल पटकत रइथे,
गली गली मं मटकत रइथे।
सास ससुर हा बैरी होगे,
गोसइ्रया बर भैरी होगे।
गोठ ल ओकर भावै नहीं,
बिना मनाए खावै नहीं।

पांव ल ओकर परै गोसईया,
नाच रे बेंदरा थईया थईया॥2॥

तइहा के पट्ठा जवान,
पीठ मां लादके लेगय धान।
बधवा असन मेंछा अइठय,
पथरा फूटय, जेमा बइठय।
बासी ल खाके अटियावय,
चालिस मं जवनी आवय।
अब के टूरा मन सिंटागी,
झोल झोल हा पहिरे हे पागी।
कनिहा ओकर हालत रइथे,
पचय नहीं बासी ल कइथे।
टूरी टूरा के एक्के भेख,
भोरहा होथे टूरा ल देख।
लम्बा लम्बा चुंदी राखे,
मेछा ला निच्चट मुड़वाके।
मेहला असन रेंगय चाल,
फेशन के अब देखव हाल।
टूरी घूमय पहिरे बंडी,
गली गली मं आज शिखंडी।
ए मन देश के भाग जगईया,
नाच रें बेंदरा, थईया थईया॥3॥

लेड़गा हा करके परपंची,
एसो के पाइस सरपंची।
उल्टा काठा मं धान ल देवय,
सोज्झे काठा मं बाढ़ी लेवय।
भाजी संग मं भात ल खाइस,
बड़का मंउल आज कहाइस।
थोड़ बहुत ओ पढ़े होही,
एकांत डेहरी चढ़े होही,
दशकत करथे जीभ निकाल,
बारा अक्षर बारा हाल।
तभो ओकर होथे शोर
आथे ओ हा न्याव ल टोर।
लेड़गा पाथे अब्बड़ मान,
गंवई गांव मं नाऊ सियान।

कतको मिलथे चिलम पियईया
नाच रे बेंदरा थईया-थईया॥4॥