भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाटक हो रहा है / सुदर्शन वशिष्ठ

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:32, 23 अगस्त 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धन्य है नाटक के पात्र।

जो करते हैं

होते नहीं

जो होते हैं

करते नहीं
हँसते हैं औरों के लिए
हँस नहीं रहे होते
रोते हैं
तो रो नहीं रहे होते
जीते हैं तो परकाया में
जीव की तरह।

धन्य हैं नाटक के पात्र।
जो सामने-सामने साफ़-साफ़
करते हैं नाटक
अच्छे हैं उनसे
जो हमेशा करते हैं नाटक
बताते नहीं।