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नानी / पूर्णेन्दु चौधरी

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गोड़ लगैत काल
देखलिऐक ओकर कायाकें
जे गठियाक कारणें
घोकचिक’ भ’ गेल छल
छोट छिन बच्चा सन।

आँखिसँ कमजोर
कानसँ बहीर
पुछलक नाम आ
एकालाप करैत नानी
कहैत रहलि अपन कथा-व्यथा।

हमर सोझाँमे अबैत रहल
नानीक रूप सभ
अपन सासुक
चुपचाप आदेशक पालक करैत नानी
धूआँकें हाथसँ टारैत
भानसमे अपस्याँत नानी
ढेकीक ठकुरा दैत नानी
जाँत पर लगनी गबैत नानी
रातिमे सूतल धीया पुताकें
तेल लगबैत
खिस्सा कहैत नानी
चूड़ी फोरने, सिन्दूर मेटौने
ठकमुड़ी लागल बैसल नानी
पुतहुक बनाओल खएनाइ खएबाक
प्रतीक्षामे बैसलि नानी
धीयापुता लेल आनल
पौपिन्स चुसैत नानी।

कहलक रूग्ण नानी
उठा क’ बैसा देबाक लेल
आ उठा क’ बैसबैत काल लागल
जेना हम उठा रहल होइ
अपन छोट बेटीकें।