भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नानी की चिट्ठी / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:34, 22 सितम्बर 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नानी की आई है चिट्ठी ।

घर भर को आशीष लिखा है ।
और लिखी हैं बातें मिट्ठीं ।

पूछा है मुझसे- ’रे पप्पू !
नानी को क्या भूल गया तू ?
चिट्ठी तेरी एक न आई
नानी से क्या रूठ गया तू ?’
अब जल्दी से चिट्ठी लिखना
शुरू छुट्टियाँ हों, तब मिलना ।